top of page
Writer's pictureBRANDED BRAIN

सामाजिक और धार्मिक आंदोलन/ SOCIAL AND RELIGIOUS REFORM/ social and religious reform movement/ social and religious reform movement notes/ reform in indiareform in indian society/ socio religious

Updated: Jan 12

मध्यकाल में मुस्लिम आक्रमण के कारण हिन्दू समाज ने अपनी रक्षा के लिए अपने चारों ओर कृत्रिम चारदीवारी खङी कर दी थी। अपने सामाजिक ढाँचे को सुरक्षित रखने के लिए जाति-प्रथा के बंधनों को कठोर कर दिया। स्रियों के बचाव के लिए पर्दा-प्रथा, बाल-विवाह प्रायः आवश्यक मान्यताएँ बन गई।

किन्तु 19वी. शता. में जब पाश्चात्य संस्कृति से संपर्क हुआ, तब भारतीय समाज को भी परिष्कृत करने तथा नया सामाजिक -धार्मिक दृष्टिकोण विकसित करने के प्रयास आरंभ हुए। इन प्रयासों के फलस्वरूप भारतीय जीवन में नई चेतना की लहर उत्पन्न हो गयी। राजा राममोहन राय, केशवचंद्र सेन, स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, स्वामी विवेकानंद आदि सुधारकों ने हिन्दू धर्म, समाज और संस्कृति में सुधार लाने हेतु जबरदस्त आंदोलन छेङ दिया।



19वी. शता. में जो धर्म एवं समाज सुधार आंदोलन हुए, उनके मूल में अनेक कारण थे-

भारतीय समाज और धर्म में दोष- भारतीय समाज और धर्म में अनेक अंधविश्वास उत्पन्न हो गये थे। 19 वी. शता. के आरंभ में ईसाई पादरियों को भारत में धर्म-प्रचार करने की छूट दे दी गई। ईसाई मिशनरियों के स्थान-2 पर हिन्दू धर्म की कटु आलोचना आरंभ कर दी। बहुदेववाद, अवतारवाद और मूर्तिपूजा की भी कटु आलोचना की और समाज में प्रचलित कुरीतियों के लिए भी धर्म को ही दोषी ठहराया। अतः भारतीय समाज और धर्म में उत्पन्न दोषों का निवारण अनिवार्य था। ईसाई मिशनरियों के प्रचार ने भारतीयों को चुनौती दी। भारत में 19 वी. शता. में कई सामाजिक-धार्मिक आंदोलन इसलिए आरंभ हुए कि ईसाई धर्म से हिन्दू धर्म को पुनः स्थापित करने के प्रयत्न आरंभ हुए जिससे भारतीयों में एक नया दृष्टिकोण उत्पन्न हुआ, जिसमें अन्ध-विश्वास का स्थान आध्यात्मिक चिंतन ने ले लिया।


पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव- अंग्रेजी शिक्षा के कारण ही भारतीय युवकों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया। अंग्रेजी शिक्षा पद्धति के कारण ही यूरोपीय विधान,दर्शन और साहित्य का अध्ययन हमारे देश में आरंभ हुआ। यूरोपीय इतिहासकारों के उत्तेजक विचारों के प्रभाव से भारतीयों को नई शिक्षा प्राप्त हुई। अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से भारतीय, यूरोप की उदारवादी विचारधारा से परिचित हुए, जिससे उनकी सदियों की मोह-निद्रा भंग हुई। अब लोग भूतकाल पर आलोचनात्मक दृष्टि से देखने लगे और भविष्य के संबंध में एक नूतन जिज्ञासा उनके मन में उत्पन्न हुई। भारतीयों ने यूरोपीय दर्शन से जो मुख्य सिद्धांत सीखा, वह यह था कि मानवीय संबंधों का आधार परंपरागत व्यवस्था अथवा सत्ता न होकर तर्क होना चाहिये। अतः अब भारतीय धर्म और समाज की व्यवस्थाओं के औचित्य को समझने लगे। अब विचारों की शिथिलता प्रगति में बदल गई। परंपरागत रीति-रिवाजों के अंधानुकरण का वे विरोध करने लगे। ऐसे लोगों द्वारा सामाजिक और धार्मिक सुधारों का बीङा उठाना स्वाभाविक ही था।


भारतीय समाचार-पत्रों का योगदान- भारतीय समाचार पत्र, पत्रिकाओं, साहित्य आदि ने भी धर्म एवं सुधार आंदोलन में सहयोग प्रदान किया। भारतीयों द्वारा पहला अंग्रेजी भाषा में समाचार-पत्र 1780 में बंगाल-गजट के नाम से प्रकाशित हुआ। इसमें धार्मिक विरोध पर विचार-विमर्श अधिक होता था। तत्पश्चात् बंगाली भाषा में दिग्दर्शन तथा समाचार दर्पण 1818 में प्रकाशित हुए। ये समाचार-पत्र भी धर्म से अधिक प्रभावित थे। 1821 में राजा राममोहन राय ने साप्ताहिक संवाद कौमुदी प्रकाशित किया, जिसमें उनके* धार्मिक और सामाजिक विचार प्रकाशित होते थे। राजा राममोहन राय के विचारों का विरोध करने के लिए 1822 में समाचार चंद्रिका प्रकाशित होना शुरू हुआ। इसके एक माह बाद ही अप्रैल, 1822 में राजा राममोहन राय ने फारसी भाषा में एक साप्ताहिक मिरातउल अखबार तथा अंग्रेजी में ब्रह्मनिकल मैगजीन निकालना प्रारंभ किया। इन समाचार-पत्रों के माध्यम से भारतीयों ने सामाजिक और धार्मिक समस्याओं पर विचार-विमर्श आरंभ कर दिया था। 19वी. शता. के पूर्वार्द्ध में भारतीय समाचार-पत्रों ने सामाजिक और धार्मिक विषयों तथा शिक्षा से संबंधित समस्याओं पर चर्चा करके भारतीय जनमत को जागृत किया। इन समाचार-पत्रों के कारण ही लोगों ने अपने समाज व धर्म की रक्षा करने के प्रयत्न आरंभ कर दिये।

एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना

बंगाल की एशियाटिक सोसायटी ने जिसकी स्थापना 1784 में हुई थी, धर्म और समाज सुधार आंदोलनों के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया था। इस सोसाइटी के तत्वाधान में प्राचीन भारतीय ग्रंथों तथा यूरोपीय साहित्य का भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ। विदेशी विद्वानों ने प्राचीन भारतीय साहित्य का अध्ययन उनका अंग्रेजी में अनुवाद हुआ और बताया कि यह साहित्य विश्व सभ्यता की अमूल्य निधियाँ हैं। पाश्चात्य विद्वानों ने भारत की अनेक कलाकृतियों और सभ्यता के केन्द्रों की खोज की तथा उसने प्राचीन सभ्यता की श्रेष्ठता स्थापित की।

मैक्समूलर,विलियम जॉन्स,मोनियर, विल्सन आदि विद्वानों के प्राचीन भारतीय संस्कृति,कला और साहित्य को विश्व के सामने रखा, जिसका तुलनात्मक अध्ययन करने से भारतीयों को अपनी प्राचीन गौरवमय सभ्यता और संस्कृति का ज्ञान हुआ। दूसरी ओर भारतीयों को पाश्चात्य देशों के ज्ञान-विज्ञान का परिचय हुआ। कुछ यूरोपीय विद्वानों ने प्राचीन भारतीय आदर्शों की भूरि-2 प्रशंसा की, जिससे भारतीयों की सुप्त भावनाएँ जागृत हुई और उन्होंने अनुभव किया कि हम अपने मूल धर्म और सामाजिक रीति-रिवाजों से दूर चले गये हैं, जिससे हमारा पतन हुआ है। इस भावना से भारतीयों में यह विचार उत्पन्न हुआ कि जब तक धर्म और समाज की बुराइयों को दूर नहीं किया जाता, उनका कल्याण असंभव है।

पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव- भारतीय धर्म और समाज सुधार आंदोलनों का एक कारण भारतीयों पर पश्चिमी सभ्यता का प्रभाव भी था। भारत में अंग्रेजों के आने के साथ-2यूरोपीय सभ्यता का आगमन हुआ। जबकि यूरोप के विचारों पर बुद्धिवाद और व्यक्तिवाद आधिपत्य जमाये हुए थे। ऐसी स्थिति में पश्चिमी सभ्यता के प्रबल वेग के समक्ष भारतीय सभ्यता घुटने टेकती दिखाी देने लगी। अंग्रेजी पढे-लिखे लोगों के लिए पाश्चात्य सभ्यता आदर्श बन गई। पश्चिमी विचार,वेश-भूषा, खान-पान आदि से वे इतने अधिक प्रभावित हुए कि उनकी नकल करने में अपना गौरव समझने लगे। भारतीय धर्म और समाज से उनका विश्वास उठ गया और ऐसा प्रतीत होने लगा, मानो संपूर्ण भारत पाश्चात्य सभ्यता का शिकार हो जायेगा। ऐसी स्थिति में कट्टर हिन्दुओं और बौद्धिक वर्ग ने अनुभव किया कि यदि धर्म और समाज में आवश्यक सुधार नहीं किये गये तो भारत में धर्म और समाज का अस्तित्व ही समाप्त हो जायेगा। 19 वी. शताब्दी में हुई पश्चिम की वैज्ञानिक प्रगति से अंधविश्वासों एवं रूढिवादिता का अंधकार हटने लगा।और उन्होंने पाश्चात्य सभ्यता की ओर भारतीयों की भाग-दौङ का विरोध कर भारतीय धर्म और समाज में आस्था रखने की प्रेरणा दी। उपर्युक्त कारणों से भारतीयों में सामाजिक और धार्मिक नवचेतना का संचार हुआ और 19वी. शता. में अनेक सुधारक पैदा हुए, जिन्होंने भारतीय धर्म और समाज सुधार आंदोलनों का नेतृत्व किया। कुछ उग्र सुधारवादी थे जो समाज में क्रांतिकारी सुधार चाहते थे।वे पश्चिमी सभ्यता एवं संस्कृति को आधार मानकर भारतीय धर्म और समाज में सुधार करना चाहते थे।


इनमें ब्रह्म समाज और प्रार्थना समाज मुख्य थे। इनके नेताओं ने जब अत्यधिक मौलक परिवर्तन चाहे तो इनकी प्रतिक्रिया कट्टर सुधार आंदोलनों के रूप में प्रकट हुई। ब्रह्म समाज, आर्य समाज और रामकृष्ण मिशन ऐसे कट्टर सुधारवादी प्रयास थे।


social and religious reformers of india

social and religious reform movement

social and religious reform movement notes

social and religious reforms

social and religious reform movements in the 19th century

social and religious reform questions and answers

social and religious reform movement pdf

social and religious reforms class 8

social and religious reform movement question answer

social and religious reform movement conclusion


social and religious reform in india

social and religious reform in 19th century

social and religious reform movement in kerala

social and religious reform movement in kerala psc

social and religious reform movement in kerala in malayalam

social and religious reform movement in india

social and religious reform movement in kerala pdf

social and religious reform movements in the 19th century tnpsc

questions

social and religious reform movements in the 19th century in tamil

social and religious reform movements in the 19th century pdf


socio religious reform movement

socio-religious reform movement pdf

religious reformers of india

socio-religious reform movements upsc pdf

religious reform movement

religious reform and public debates

social and religious reform movement notes

socio religious reform movement mcq

religious reformer meaning

religious reform


reform in india

reform in indian society

reform in indian financial system

reform in indian agriculture

reform in indian money market

reform in hindi

reform in hindi meaning

land reform in india

reform movement in india

prison reform in india


social and religious reform movement in india

social and religious reform movement notes

social and religious reform movement pdf

social and religious reform movement question answer

social and religious reform movement conclusion

social and religious reform movement mcq

social and religious reform movement in 19th and 20th century

social and religious reform movement notes pdf

social and religious reform movement upsc

social and religious reform movement in hindi


Recent Posts

See All

Comments

Couldn’t Load Comments
It looks like there was a technical problem. Try reconnecting or refreshing the page.
BLOG ALL POST
bottom of page