International Union of Geodesy and Geophysics (IUGG) के शोध के आधार पर पृथ्वी के आंतरिक भाग को तीन वृहद् मंडलों में विभक्त किया गया है /
जो निम्न हैं: i. भू-पर्पटी (Crust): IUGG ने इसकी औसत मोटाई 30 किमी. मानी है यद्यपि अन्य स्रोतों के अनुसार क्रस्ट की मोटाई 100 किमी. बताई गई है । IUGG के अनुसार क्रस्ट के ऊपरी भाग में ‘P’ लहर की गति 6.1 किमी. प्रति सेकेंड तथा निचले भाग में 6.9 किमी. प्रति सेकेंड है । ऊपरी क्रस्ट का औसत घनत्व 2.8 एवं निचले क्रस्ट का 3.0 है । घनत्व में यह अंतर दबाव के कारण माना जाता है । ऊपरी क्रस्ट एवं निचले क्रस्ट के बीच घनत्व सम्बंधी यह असंबद्धता ‘कोनराड असंबद्धता’ कहलाती है । क्रस्ट का निर्माण मुख्यतः सिलिका और एल्युमिनियम से हुआ है । अतः इसे SIAL परत भी कहा जाता है ।
2. मैंटल (Mantle): क्रस्ट के निचले आधार पर भूकंपीय लहरों की गति में अचानक वृद्धि होती है तथा यह बढ़कर 7.9 से 8.1 किमी. प्रति सेकेंड तक हो जाती है । इससे निचले क्रस्ट एवं ऊपरी मेंटल के मध्य एक असंबद्धता का निर्माण होता है, जो चट्टानों के घनत्व में परिवर्तन को दर्शाता है । इस असंबद्धता की खोज 1909 ई. में रूसी वैज्ञानिक ए. मोहोरोविकिक (A. Mohorovicic) ने की । अतः इसे ‘मोहो-असंबद्धता’ भी कहा जाता है । मोहो-असंबद्धता से लगभग 2,900 किमी. की गहराई तक मेंटल का विस्तार है । इसका आयतन पृथ्वी के कुल आयतन (Volume) का लगभग 83% एवं द्रव्यमान (Mass) का लगभग 68% है । मेंटल का निर्माण मुख्यतः सिलिका और मैग्नीशियम से हुआ है, अतः इसे SiMa परत भी कहा जाता है । मेंटल को IUGG ने भूकंपीय लहरों की गति के आधार पर पुनः तीन भागों में बाँटा है- (1) मोहो असंबद्धता से 200 किमी. (2) 200 किमी. से 700 किमी. (3) 700 किमी. से 2,900 किमी. ।
ऊपरी मेंटल में 100 से 200 किमी. की गहराई में भूकंपीय लहरों की गति मंद पड़ जाती है तथा यह 7.8 किमी. प्रति सेकेंड मिलती है । अतः इस भाग को ‘निम्न गति का मंडल’ (Zone of Low Velocity) भी कहा जाता है । ऊपरी मेंटल एवं निचले मेंटल के बीच घनत्व सम्बंधी यह असंबद्धता रेपेटी असंबद्धता कहलाती है ।
3. क्रोड़ (Core): निचले मैंटल के आधार पर ‘P’ तरंगों की गति में अचानक परिवर्तन आता है तथा यह बढ़ कर 13.6 किमी. प्रति सेकेंड हो जाती है । यह चट्टानों के घनत्व में एकाएक परिवर्तन को दर्शाता है, जिससे एक प्रकार की असंबद्धता उत्पन्न होती है । इसे ‘गुटेनबर्ग-विशार्ट असंबद्धता’ भी कहते हैं । गुटेनबर्ग-असंबद्धता से लेकर 6,371 किमी. की गहराई तक के भाग को क्रोड़ कहा जाता है । इसे भी दो भागों में बाँटकर देखते हैं- 2,900 से 5,150 किमी. और 5,150-6,371 किमी. । इन्हें क्रमशः बाह्य अंतरतम एवं आंतरिक अंतरतम (क्रोड़) कहते हैं । इनके बीच पाई जाने वाली घनत्व सम्बंधी असंबद्धता ‘लैहमेन असंबद्धता’ कहलाती है । क्रोड़ में सबसे ऊपरी भाग में घनत्व 10 होता है, जो अंदर जाने पर 12 से 13 तथा सबसे आंतरिक भागों में 13.6 हो जाता है ।
इस प्रकार क्रोड़ का घनत्व मैंटल के घनत्व के दोगुने से भी अधिक होता है । बाह्य अंतरतम में ‘S’ तरंगें प्रवेश नहीं कर पाती है । आंतरिक अंतरतम में जहाँ घनत्व सर्वाधिक है, तुलनात्मक दृष्टि से अधिक तरल होने के कारण ‘P’ तरंगों की गति 11.23 किमी. प्रति सेकेंड रह जाती है ।
यद्यपि अत्यधिक तापमान के कारण क्रोड़ को पिघली हुई अवस्था में रहना चाहिए किन्तु अत्यधिक दबाव के कारण यह अर्द्धतरल या प्लास्टिक अवस्था में रहता है । क्रोड़ का आयतन पूरी पृथ्वी का मात्र 16% है, परंतु इसका द्रव्यमान पृथ्वी के कुल द्रव्यमान का लगभग 32% है ।
क्रोड़ के आंतरिक भागों में यद्यपि सिलिकन की भी कुछ मात्रा रहती है, परंतु इसका निर्माण मुख्य रूप से निकेल और लोहा से हुआ है । अतः इसे NiFe परत भी कहते हैं ।
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