भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश शासन का विस्तृत प्रभाव का वर्णन निम्नानुसार है —
अंग्रेजी माल का भारतीय बाजार में आने से भारतीय हस्तशिल्प का भारत में ह्रास हुआ ,जबकि कारखानों के खुलने से यूरोपीय बाजार में भारतीय हस्तशिल्प को नुकसान हुआ |
अनौद्योगीकरण – भारतीय हस्तशिल्प का ह्रास
भारत में अनेक शहरों का पतन तथा भारतीय शिल्पियों का गांव की तरफ पलायन का मुख्य कारण अनौद्योगीकरण ही था |
भारतीय दस्तकारों ने अपने परंपरागत व्यवसाय को त्याग दिया व गांव में जाकर खेती करने लगे |
भारत एक सम्पूर्ण निर्यातक देश से सम्पूर्ण आयतक देश बन गया |
कृषकों की बढ़ती हुई दरिद्रता के मुख्य कारण थे
कृषकों की बढ़ती हुई दरिद्रता
जमींदारों के द्वारा शोषण |
जमीन की उर्वरता बढ़ाने में सरकार द्वारा प्रयाप्त कदम न उठाया जाना|
ऋण के लिए सूदखोरो पर निर्भरता |
अकाल व अन्य प्राकृतिक आपदा |
पुराने जमींदारों की तबाही तथा नई जमींदारी व्यवस्था का उदय — नए जमींदार अपने हितों को देखते हुए अंग्रेजों के साथ रहे और किसानों से कभी भी उनके सम्बन्ध अच्छे नही रहे |
कृषि में स्थिरता एवं उसकी बर्बादी — किसानों में धन , तकनीक व कृषि से सम्बंधित शिक्षा का अभाव था |जिसके कारण भारतीय कृषि का धीरे धीरे पतन होने लगा व उत्पादकता में कमीं आने लगी |
भारतीय कृषि का वाणिज्यीकरण वाणिज्यीकरण और विशेषीकरण को कई कारणों ने प्रोत्साहित किया जैसे मुद्रा अर्थव्यवस्था का प्रसार ,रूढ़ि और परंपरा के स्थान पर संविदा और प्रतियोगिता ,एकीकृत राष्ट्रिय बाजार का अभ्युदय,देशी एवं विदेशी व्यपार में वृद्धि ,रेलवे एवं संचार साधनों से राष्ट्रीय मंडी का विकास एवं अंग्रेजी पूंजी के आगमन से विदेशी व्यपार में वृद्धि |
भारतीय कृषि का वाणिज्यीकरण का प्रभाव— कुछ विशेष प्रकार के फसलों का उत्पादन राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय बाजार के लिए होने लगा | भूमि कर अत्यधिक होने के कारण किसान इसे अदा करने में असमर्थ था और मजबूरन उसे वाणिज्यिक फसलों का उत्पादन करना पड़ता था | कृषि मूल्यों पर विदेशी उतार चढ़ाव का भी प्रभाव पड़ने लगा /
19 वीं शताब्दी में भारत में बड़े पैमाने पर आधुनिक उद्योगों की स्थापना की गई , जिसके फलस्वरूप देश में मशीनी युग प्रारम्भ हुआ |भारत में पहली सूती वस्त्र मिल 1853 में कावसजी नानाभाई ने बम्बई में स्थापित की और पहली जूट मिल 1855 में रिशरा में स्थापित किया गया |आधुनिक उद्योगों का विकास मुख्यतः विदेशियों के द्वारा किया गया | विदेशियों का भारत थे —
आधुनिक उद्योगों का विकासमें निवेश करने के मुख्य कारण
भारत में सस्ते श्रम की उपलब्धता|
कच्चे एवम तैयार माल की उपलब्धता|
भारत एवम उनके पडोसी देशों में बाजार की उपलब्धता|
पूंजी निवेश की अनुकूल दशाएं|
नौकरशाहियों के द्वारा उद्योगपतियों को समर्थन देने की दृढ इच्छाशक्ति|
कुछ वस्तुओं के आयत के लाभप्रद अवसर|
आर्थिक निकास — भारतीय उत्पाद का वह हिस्सा , जो जनता के उपभोग के लिए उपलब्ध नहीं था तथा राजनितिक कारणों से जिसका प्रवाह इंग्लैंड की ओर हो रहा था ,जिसके बदले में भारत को कुछ भी प्राप्त नहीं होता था ,उसे ही आर्थिक निकास कहा गया |दादा भाई नौरोजी ने सर्वप्रथम अपनी पुस्तक ‘पावर्टी एंड अनब्रिटिश रूल इन इंडिया’ में आर्थिक निकास की अवधारणा प्रस्तुत की |
आर्थिक निकास के तत्व —अंग्रेज प्रशासनिक एवं सैनिक अधिकारियों के वेतन |
भारत के द्वारा विदेशों से लिए गए ऋण का ब्याज|
नागरिक एवं सैन्य विभाग के लिए विदेशों से खरीदी गई वस्तुएं|
नौवहन कंपनियों को की गई अदायगी तथा विदेशी बैंकों तथा बिमा कंपनियों को दिया गया धन|
गृह व्यय तथा ईस्ट इंडिया कंपनी के भागीदारों का लाभांश|
अकाल एवं गरीबी प्राकृतिक विपदाओं ने भी किसानों को गरीब बनाया | अकाल के दिनों में चारे के आभाव में पशुओं की मृत्यु हो जाती थी |पशुओं व संसाधनों के आभाव में कई बार किसान खेती ही नही कर पाते थे |
औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था की राष्ट्रवादी आलोचना — औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था की राष्ट्रवादियों ने निम्न तरीके से आलोचना की —
औपनिवेशिक शोषण के कारण ही भारत दिनोंदिन निर्धन होता जा रहा है|
गरीबी की समस्यां और निर्धनता में वृद्धि हो रही थी |
ब्रिटिश शासन की व्यपार,वित्त ,आधारभूत विकास तथा व्यय की नीतियाँ साम्राज्यवादी हितों के अनुरूप है |
भारतीय शोषण को रोकने एवं भारत की स्वंत्रत अर्थव्यवस्था को विकसित करने की मांग की गई |
इन आलोचकों में प्रमुख थे -दादाभाई नौरोजी , गोपाल कृष्ण गोखले ,जी सुब्रह्मण्यम अय्यर , महादेव गोविन्द रानाडे ,रोमेश चंद्र दत्त , पृथवीशचंद रॉय आदि |
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