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Updated: Jan 9

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वनस्पति विज्ञान' के जनक थियोफ्रेस्टस हैं / विज्ञान की वह शाखा जिसके अंतर्गत पादपों ( वनस्पतियों ) का अध्ययन किया जाता है, वनस्पति विज्ञान कहलाता है।

वनस्पति विज्ञान की दो प्रमुख शाखायें हैं -

( क ) शुद्ध या मौलिक वनस्पति विज्ञान ( pure botany ) - वनस्पति विज्ञान की वह शाखा है जिसमें पौधों का प्राकृतिक रूप से अध्ययन किया जाता है । ( ख ) व्यावहारिक या अनुप्रयुक्त वनस्पति विज्ञान ( applied botany ) - इस शाखा में पौधों का अध्ययन मानव जाति की भलाई तथा उन्नति के लिए करते हैं । मौलिक वनस्पति विज्ञान व्यावहारिक वनस्पति विज्ञान का आधार है। अत : पहले मौलिक ( शुद्ध ) वनस्पति विज्ञान का अध्ययन ही किया जाना आवश्यक होता है ।

( क ) मौलिक ( शुद्ध ) वनस्पति विज्ञान की शाखायें ( branches of pure botany ) -

1 . आकारिकी ( Morphology ) वनस्पति विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत पौधों तथा उनके विभिन्न भागों की बाह्य संरचना तथा आकृति का अध्ययन करते हैं । इसके दो उपविभाग हैं - ( अ ) बाह्य आकारिकी ( External morphology ) - इसमें पौधों तथा उनके विभिन्न अंगों का बाहर से निरीक्षण किया जाता है ; जैसे - जड़ , तना , पत्ती , पुष्प , फल तथा बीज की रूपरेखा , उनकी बाह्य संरचना , आकृति आदि का अध्ययन तथा इन अगों का दूसरे पोधों के उन्हीं अंगों के साथ तुलनात्मक अध्ययन । ( ब ) आन्तरिक आकारिकी ( internal morphology ) - इसमें पौधों के अंगों की भीतरी संरचना का अध्ययन किया जाता है । इसके पुनः तीन भाग हैं - ( i ) शारीरिकी ( anatomy ) - इसमें केवल नग्न नेत्रों ( naked eyes ) द्वारा , पौधों के भागों की आन्तरिक संरचना का अध्ययन किया जाता है ।

( ii ) औतिकी ( histology - histus = a tissue ) - इसमें सूक्ष्मदर्शी ( micro - scope ) की सहायता से पौधों की आन्तरिक संरचना अथवा ऊतकों तथा ऊतक तन्त्रों ( tissues and tissue systems ) का अध्ययन किया जाता है । ( iii ) कोशिका विज्ञान ( cytology ) - इसमें कोशिका ( cell ) और उसके अन्दर पाये जाने वाले सजीव व निर्जीव अन्तर्वेशनों ( living and non - living inclusions ) ; जैसे - माइटोकॉण्डिया , हरितलवक , राइबोसोम्स . गॉल्जीकाय , केन्द्रक तथा जीवद्रव्य में उपस्थित अन्य अन्तर्वेशनों की विस्तृत संरचना आदि का अध्ययन किया जाता है ।

2 . शरीर - क्रियाविज्ञान ( physiology ) - इस शाखा के अन्तर्गत पौधों तथा उनके विभिन्न अंगों की विभिन्न जीवन सम्बन्धी क्रियाओं का अध्ययन करते हैं । जैसे - पोषण ( nutrition ) , श्वसन ( respiration ) , उपापचय ( metabolism ) , गति ( movement ) , वृद्धि ( growth ) , जनन ( reproduction ) आदि क्रियाओं का ज्ञान प्राप्त करते हैं । 3 . पारिस्थितिकी ( Ecology ) इस शाखा के अन्तर्गत पौधों तथा उनके वातावरण ( environment ) के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करते हैं । इस सन्दर्भ में पौधों में अनुकूलन , बनावट आदि में परिवर्तन , मृदा के साथ पौधों के सम्बन आदि का अध्ययनकरते हैं ।

4 . वर्गिकी या वर्गीकरण वनस्पति विज्ञान ( taxonomy or systemic botany ) - इस शाखा विभिन्न लक्षणों की विभिन्नताओं तथा समानताओं के आधार पर उनके समह ( grouns or taxa ) बनाकर उनका वगाकरण किया जाता है । इस प्रकार इन पौधों का अध्ययन कम समय तथा व्यवस्थित ढंग से हो जाता है । पौधों का नामकरण ( nomenclature ) भी इस शाखा के अन्तर्गत ही किया जाता है । 5 . पादप भूगोल ( plant geography ) - इस शाखा में पौधों का भूमि पर( क ) मौलिक ( शुद्ध ) वनस्पति विज्ञान की शाखायें ( branches of pure botany ) -



1 . आकारिकी ( Morphology )

वनस्पति विज्ञान की वह शाखा है जिसके अन्तर्गत पौधों तथा उनके विभिन्न भागों की बाह्य संरचना तथा आकृति का अध्ययन करते हैं । इसके दो उपविभाग हैं -


( अ ) बाह्य आकारिकी ( External morphology ) -

इसमें पौधों तथा उनके विभिन्न अंगों का बाहर से निरीक्षण किया जाता है ; जैसे - जड़ , तना , पत्ती , पुष्प , फल तथा बीज की रूपरेखा , उनकी बाह्य संरचना , आकृति आदि का अध्ययन तथा इन अगों का दूसरे पोधों के उन्हीं अंगों के साथ तुलनात्मक अध्ययन ।


( ब ) आन्तरिक आकारिकी ( internal morphology ) -

इसमें पौधों के अंगों की भीतरी संरचना का अध्ययन किया जाता है । इसके पुनः तीन भाग हैं -

( i ) शारीरिकी ( anatomy ) -

इसमें केवल नग्न नेत्रों ( naked eyes ) द्वारा , पौधों के भागों की आन्तरिक संरचना का अध्ययन किया जाता है ।

( ii ) औतिकी ( histology - histus = a tissue ) -

इसमें सूक्ष्मदर्शी ( micro - scope ) की सहायता से पौधों की आन्तरिक संरचना अथवा ऊतकों तथा ऊतक तन्त्रों ( tissues and tissue systems ) का अध्ययन किया जाता है ।

( iii ) कोशिका विज्ञान ( cytology ) -

इसमें कोशिका ( cell ) और उसके अन्दर पाये जाने वाले सजीव व निर्जीव अन्तर्वेशनों ( living and non - living inclusions ) ;

जैसे - माइटोकॉण्डिया , हरितलवक , राइबोसोम्स . गॉल्जीकाय , केन्द्रक तथा जीवद्रव्य में उपस्थित अन्य अन्तर्वेशनों की विस्तृत संरचना आदि का अध्ययन किया जाता है ।


2 . शरीर - क्रियाविज्ञान ( physiology ) -

इस शाखा के अन्तर्गत पौधों तथा उनके विभिन्न अंगों की विभिन्न जीवन सम्बन्धी क्रियाओं का अध्ययन करते हैं ।

जैसे - पोषण ( nutrition ) , श्वसन ( respiration ) , उपापचय ( metabolism ) , गति ( movement ) , वृद्धि ( growth ) , जनन ( reproduction ) आदि क्रियाओं का ज्ञान प्राप्त करते हैं ।


3 . पारिस्थितिकी ( Ecology )

इस शाखा के अन्तर्गत पौधों तथा उनके वातावरण ( environment ) के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त करते हैं ।

इस सन्दर्भ में पौधों में अनुकूलन , बनावट आदि में परिवर्तन , मृदा के साथ पौधों के सम्बन आदि का अध्ययनकरते हैं ।


4 . वर्गिकी या वर्गीकरण वनस्पति विज्ञान ( taxonomy or systemic botany ) -

इस शाखा विभिन्न लक्षणों की विभिन्नताओं तथा समानताओं के आधार पर उनके समह ( grouns or taxa ) बनाकर उनका वगाकरण किया जाता है ।

इस प्रकार इन पौधों का अध्ययन कम समय तथा व्यवस्थित ढंग से हो जाता है ।

पौधों का नामकरण ( nomenclature ) भी इस शाखा के अन्तर्गत ही किया जाता है ।


5 . पादप भूगोल ( plant geography ) -

इस शाखा में पौधों का भूमि पर वितरण , तथा इस वितरण के लिए जो कारक ( factors ) उत्तरदायी होते हैं , उनका ज्ञान प्राप्त किया जाता है ।



6 . पादप जीवाश्मिकी ( palaeobotany ) -

इस शाखा में प्राचीन काल के पौधों का . जो अब विलुप्त हो चुके हैं और जिनके जीवाश्म ( fossils ) ही मिलते है , ज्ञान प्राप्त किया जाता है ।


7 . भ्रौणिकी ( embryology ) -

इसके अन्तर्गत अण्ड के निषेचन ( fertilization ) से लेकर भ्रूण तथा उसके परिवर्द्धन का अध्ययन किया जाता है ।


8 . पादप आनुवंशिकी ( plant genetics ) -

इसके अन्तर्गत पौधों के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में बंशागत लक्षणों का अध्ययन किया जाता है ।



( ख ) व्यावहारिक वनस्पति विज्ञान की शाखायें ( branches of applied hotany ) -


वनस्पति विज्ञान की इस शाखा के अन्तर्गत , मनुष्य की उन्नति तथा भलाई के लिए , पौधों का अध्ययन किया जाता है । इसको भी कई उपशाखाओं में बाँटा गया है -


1 . कृषि विज्ञान ( agriculture botany ) -

वह विज्ञान है जिसमें कृषि के लिए फसलो ( crops ) के उगाने आदि का ज्ञान प्राप्त किया जाता है ।


2 . उद्यान कृषि ( horticulture ) -

इस शाखा में पुष्पों , फलों तथा शाकभाजी ( vegetables ) उगाने के लिए उद्यान पादपों के उगाने का ज्ञान प्राप्त किया जाता है ।


बोनसाई ( bonsai - bon = पौधा ; sai = गमला ) - जापान के उद्यान कृषकों ने छोटे - छोटे फलों वाले वृक्षों को , गमलों में , छोटे आकार के पौधों में उगाकर एक चमत्कारी कार्य किया है ।

अब संसार के अनेक देशो मे अनार , नींबू , सन्तरा , चीड़ ( Pinus longifolia ) आदि के छोटे - छोटे पौधे गमलो में उगाये जाते हैं । यह एक रोचक व लाभकारी कार्य है ।


3 . पादप रोग विज्ञान ( plant pathology ) -

इस शाखा में पादप रोगों , उनके उपचार तथा रोकथाम आदि का ज्ञान प्राप्त किया जाता है ।


4 . भेषज विज्ञान ( pharmocognosy ) -

इसमें औषधि में काम वाले पौधो अर्थात् औषधीय पौधों ( medicinal plants ) के बारे में ज्ञान प्राप्त किया जाता है ।


5 . वन विद्या या वनवर्धन ( forestry or silviculture ) -

इसमें वनो से वृक्षों की लकड़ी प्राप्त करने आदि हेत अध्ययन किया जाता है ।


6 . मृदा विज्ञान ( pedology ) -

भूमि ( soil ) अर्थात् मृदा के अध्ययन को कहते हैं ।

पादप आनुवंशिकी ( plant genetics ) - इसमें पौधो की आनुवंशिकता ( heredity ) तथा विभिन्नताओं ( variations ) का अध्ययन किया जाता है ।



आजकल तो अनेक नई और महत्वपूर्ण शाखायें पनपने लगी है।

जो किसी एक विशेष और अध्ययन करके वनस्पति किसान को और अधिक समृद्ध करने क साथ - साथ इसका क्षेत्र अत्यधिक विस्तृत करती जा रही है ।

वनस्पति विज्ञान का विस्तार ( scope of botany ) को विभिन्न शाखाये पौधो के बारे में अधिकाधिक ज्ञान की वृद्धि करके इस विज्ञान के क्षेत्रको जा रही है ।

पौधों को जनन क्रिया , विकास तथा आर्थिक महत्त्व का अध्ययन भी तो इसी विज्ञान के से छोटे पौधे से लेकर बड़े से बड़े वृक्ष के विभिन्न समूहों तथा अलग - अलग पौधों का अधिकाधिक विस्तृत करती जा रही है । पौधों की जान के अन्तर्गत किया जाता है ।


छोटे से छोटे पौधे से लेकर अध्ययन विभिन्न शाखाओं में किया जाता है ; जैसे - शैवाल ( algae ) , कवक ( fungi ) , जीवाणु ( bacteria ) , वाइरस ( virus ) आदि के अध्ययन के लिए क्रमश : फाइकोलोजी ( phycology ) , माइकोलोजी ( mycology ) , बैक्टेरिओलोजी ( bacteriology ) , वाइरोलोजी ( virology ) आदि तथा आर्थिक वनस्पति विज्ञान ( economic botany ) आदि।


वनस्पति विज्ञान का क्षेत्र बढ़ाने के साथ - साथ इसे अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बना दिया है ।

इसका कारण यह है कि प्रयोग में आने वाली ये शाखायें सामान्य जन - जीवन के लिए आवश्यक होती हैं ।

ये सब शाखायें प्रमुख रूप से अनुप्रयुक्त वनस्पति विज्ञान ( applied botany ) बनाने में सहायता करती हैं ।


जैसा कि हम पहले बता चुके हैं विगत कुछ वर्षों में जीवविज्ञान सम्बन्धी विषयों में महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं , फलस्वरूप सूक्ष्मतम संरचना और कार्य को समझने - समझाने के लिए कुछ अलग ही शाखाओं ने जन्म ले लिया है और वे विकास के पथ पर अग्रसर होती जा रही हैं ।

इनमें से सूक्ष्म जीवविज्ञान या सूक्ष्मजैविकी ( microbiology ) , जैव रसायन विज्ञान ( biochemistry ) , जैवभौतिकी ( biophysics ) , अणु जीवविज्ञान ( molecular biology ) आदि अनेक स्वतन्त्र विषय चुने जा चुके हैं ।

इधर , पौधे मनुष्य जीवन के लिए तो क्या किसी भी जीवन के लिए परमावश्यक हैं ।

रोटी , कपड़ा और मकान की सभी समस्यायें अब तक वनस्पतियों ने ही पूरी की हैं ।

इसके अतिरिक्त आवश्यक से आवश्यक और आरामदेह वस्तुओं इत्यादि के लिए भी तो मनुष्य को पूर्ण रूप से वनस्पतियों पर ही निर्भर रहना पड़ता है ।


आयुर्वेद के आधार पर पौधों से प्राप्त चमत्कारिक औषधियों तथा कवकों व जीवाणुओं से प्राप्त प्रतिजैविक पदार्थों ( antibiotics ) के कारण तो वनस्पतियों का क्षेत्र चिकित्सा विज्ञान में नये सिरे से व्यापक होता जा रहा है । वितरण , तथा इस वितरण के लिए जो कारक ( factors ) उत्तरदायी होते हैं , उनका ज्ञान प्राप्त किया जाता है । 6 . पादप जीवाश्मिकी ( palaeobotany ) - इस शाखा में प्राचीन काल के पौधों का . जो अब विलुप्त हो चुके हैं और जिनके जीवाश्म ( fossils ) ही मिलते है , ज्ञान प्राप्त किया जाता है । 7 . भ्रौणिकी ( embryology ) - इसके अन्तर्गत अण्ड के निषेचन ( fertilization ) से लेकर भ्रूण तथा उसके परिवर्द्धन का अध्ययन किया जाता है । 8 . पादप आनुवंशिकी ( plant genetics ) - इसके अन्तर्गत पौधों के एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में बंशागत लक्षणों का अध्ययन किया जाता है ।


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